समय की मांग के अनुरूप रचा जाए राजस्थानी बाल साहित्य ‘राजस्थानी बाल साहित्य री दसा अर दिसा’ विषयक संगोष्ठी आयोजित

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बीकानेर, 14 नवंबर। ‘साहित्य का सृजन समय की आवश्यकता के अनुरूप होना जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर उसकी ग्राह्यता धीरे-धीरे कम होने लगती है और वह लोक से दूर हो जाता है।’
राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय तथा सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय के संयुक्त तत्वावधा्न में सोमवार को आयोजित संगोष्ठी ‘आज रे बगत मांय राजस्थानी बाल साहित्य री दसा अर दिसा’ को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने यह विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सीएडी-आईजीएनपी के अतिरिक्त आयुक्त दुर्गेश कुमार बिस्सा थे। उन्होंने कहा कि राजस्थानी करोड़ों लोगों द्वारा बोली और समझी जाने वाली भाषा है। इसमें बाल साहित्य सृजन भी लगातार हो रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि यह समय के अनुसार रचा जाए। इसमें प्रयुक्त होने वाले शब्द और विषय आज की मांग के अनुरूप हो।
अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कोषाध्यक्ष राजेन्द्र जोशी ने कहा कि राजस्थानी जन-जन के मन में रची-बसी भाषा है। साहित्य की दृष्टि से यह सक्षम और समर्थ है। युवा पीढ़ी इससे जुड़ी रहे और बच्चों को भी इससे दूर नहीं किया जाए।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ. गौरी शंकर प्रजापत ने बाल साहित्य की विकास यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बाल साहित्य की दीठ से राजस्थानी बेहद समृद्ध है। उन्होंने कहा कि राजस्थानी की मान्यता के लिए सभी को समन्वित प्रयास करने होंगे।
पुस्तकालय विकास समिति के अध्यक्ष हरि शंकर आचार्य ने कहा कि पुस्तकालय द्वारा महापुरूषों की स्मृति में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसी श्रृंखला में बाल दिवस के अवसर पर गोष्ठी और राजस्थानी बाल काव्य सम्मेलन आयोजित किया गया।
गीतकार राजाराम स्वर्णकार ने बाल रचनाओं की प्रस्तुति दी। पुस्तकालयाध्यक्ष विमल कुमार शर्मा ने आगंतुकों का आभार जताया। इस दौरान पाठक मानसी राणा, रजत राणा, जयश्री बीका, नरपत चारण, लक्ष्य जोशी, साहिबा गुलनार, अपूर्वा शर्मा और जयनारायण हटीला ने पंडित नेहरू के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित प्रस्तुतियां दी।
इस दौरान अब्दुल शकुर सिसोदिया, असद अली ‘असद’, नरेन्द्र सिंह कस्वां, सलीम अहमद, परमनाथ सिद्ध सहित अनेक लोग मौजूद रहे।

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