मुरादें पूरी करने वाला पुनीत पर्व है चालिहा :किशन सदारंगानी

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बीकानेर,04 अगस्त। सिंधी समाज में चालीस दिनों तक चलने वाला सबसे महत्वपूर्व पुनीत पर्व है ‘चालिहा’। इस चालीस दिना में व्रत-उपवास, दान-दक्षिणा तथा पुण्य कर्म करने का विषेष महत्व माना गया है। इन दिनों सिर से बाल कटवाना, दाढी बनवाना, साबुन-तैल लगाना इत्यादि वर्जित होता है। रहन-सहन पूर्ण रूपेण सात्विक रहना पडता है। इन चालीस दिनों में समस्त भक्त प्रतिदिन संध्या को मंदिरों में जाते है। साथ ही जल किनारे जाकर जल प्राणियों को भोजन के रूप में प्रसाद देते है। यह त्यौहार श्रावण मास की संक्रान्ति से प्रारम्भ होता है तथा आने वाले चालीस दिनों तक चलता है। (प्रत्येक वर्ष की 16 जुलाई से 24 अगस्त तक मनाया जाता है) चालिहा से पूर्व यदि किसी ने कोई मन्नत मांगी हो और उसकी मुराद पुरी हो गयी हो तो वह व्यक्ति इन चालीस दिनों में कभी भी अपने घर पर *‘बहराना*’ निकालता है। यह *बहराना* घर से मंदिर तक ले जाया जाता है। सैकडों नर-नारियां बहराने के साथ जुलुस के रूप में साथ होते है। बहराना (ज्योति) मंदिर के कुण्ड के जन में या किसी भी नदी नहर आदि के जल में प्रवाहित किया जाता है। अंतिम दिवस अर्थात चालीसवें दिवस को ‘चालिहा’ का मुख्य पर्व दिवस कहा जाता है। इस दिन बहुत बडा जुलूस निकाला जाता है। कई प्रकार की सुन्दरी झांकियां सजाई व प्रदर्शित की जाती है। लोग संध्या में जन किनारे जाकर ‘बहराना’ जल में प्रवाहित करते है तथा इष्टदेव झूलेलाल की पूजा-आरती इत्यादि करने के पश्चात पलउ(आँचल) पसार कर लाल सांई से अपने परिवार देश व धर्म की सुरक्षा व उन्नति की प्रार्थना करते है। जो लोग किसी कारण से चालीस दिवस तक उपवास नहीं करते है व चालीसवें दिवस अवश्य उपवास करते है।*यह त्यौहार श्रावण मास की संक्रान्ति से प्रारम्भ होता है तथा आने वाले चालीस दिनों तक चलता है। (प्रत्येक वर्ष की 16 जुलाई से 24 अगस्त तक मनाया जाता है) चालिहा से पूर्व यदि किसी ने कोई मन्नत मांगी हो और उसकी मुराद पुरी हो गयी हो तो वह व्यक्ति इन चालीस दिनों में कभी भी अपने घर पर ‘बहराना’ निकालता है।

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