“काव्य मधुरिमा” का हुआ लोकार्पण

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बीकानेर 7 अक्टूबर।मधुरिमा सिंह की प्रथम पुस्तक” काव्य मधुरिमा” का लोकार्पण अखिल भारतीय साहित्य परिषद महानगर बीकानेर के सानिध्य में होटल राजमहल में आयोजित किया गया। मां सरस्वती की प्रतिमा पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मंच पर आसीन मुख्य अतिथि स्वामी विमर्शानंद गिरि महाराज, विशिष्ट अतिथि डॉ अन्नाराम शर्मा, अध्यक्ष डॉक्टर बसंती हर्ष, लेखिका मधुरिमा सिंह, विशिष्ट अतिथि श्री शिव नाम सिंह और प्रकाशक श्री मनमोहन कल्याणी और घनश्याम सिंह के कर कमल द्वारा पुस्तक का लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वामी विमर्शानंद गिरि महाराज शिवमठ शिवबाड़ी ने अपने आशीर्वचन में कहा की मधुरिमा ने अपने काव्य में मां के वात्सल्य से लेकर उसकी सेवा, श्रद्धा, समर्पण और त्याग के सभी अंतस्थ की गहराइयों के भीगती हुई मां की लौकिक और अलौकिक दोनों शक्तियों को छूने का सफल प्रयास किया है और अन्य कविताओं के बारे में अपने विचार रखें।विशिष्ट अतिथि डॉ अन्नाराम शर्मा ने अपने उद्बोधन में प्रत्येक कविता की 4– 6 लाइन पढ़ी जो उनके मन को छुए थी और उन्होंने मधुरिमा के मनुष्यों को झकझोरते हुए कहा कि भोर हो गई अब तो जागो क्यों सपनों में खोए हो, उसका भी वर्णन किया। पुस्तक की समीक्षा श्रीमती मोनिका गौड ने केवल कविताओं के सुखद पक्ष की ही नहीं बल्कि उनकी गलतियों को भी रेखांकित किया। मधुरिमा की सभी कविताएं समय अनुसार लिखी गई है। लेखिका मधुरिमा सिंह ने अपने जीवन में मां की अमिट छाप को उजागर करते हुए मां की सभी कविताओं का जीवन में क्या महत्व है प्रेरणास्पद बताया। अपनी गृहस्थी की सफलता का श्रेय अपनी मां को दिया। उन्होंने बचपन, गांव, चिड़िया, पेड़ , पतंग के माध्यम से जिंदगी क्या है यह बताने का प्रयत्न किया। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉक्टर बसंती हर्ष ने कहा किउनकी सभी कविताएं सरल व सुगम भाषा में है। उनकी पुस्तक बच्चों को अवश्य पढ़ाए जिससे उनमें संस्कार जागृत हो। इनकी अधिकांश कविताएं पढ़कर सोचने को मजबूर करती हैं। लेखिका का परिचय श्री विनोद कुमार ओझा ने दिया। घनश्याम सिंह ने उनकी सफलता के लिए शुभकामनाएं दी। मंचाचीन अतिथियो और काव्य मधुरिमा में सहयोग करने पर सभी को मंच द्वारा माला, शाल ,श्रीफल और स्मृति चिह्न देखकर सम्मानित किया। मंच संचालनश्रीमती सुषमा सिंह ने किया। सभी का धन्यवाद डॉक्टर एस .एन .हर्ष ने किया।

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